नए संसद में स्थ‍ापित हुआ सेंगोल (Sengol) क्या है सेंगोल का इतिहास और पूरी कहानी

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नए संसद भवन के उद्घाटन से पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास पर तमिलनाडु से आए अधीनम संतों ने धार्मिक अनुष्ठान करने के बाद पीएम मोदी (Pm Modi) को सेंगोल (Sengol) सौंपा, जिसे पीएम मोदी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला के साथ नई संसद भवन के लोकसभा भवन में स्थापित किया. लेकिन दोस्तों क्या आप सेंगोल की पूरी कहानी जानते है?

जैसे में सेंगोल का इतिहास और इसका नाम सेंगोल ही क्यों पड़ा? इसके ऊपर विराजमान नंदी का संदेश और सेंगोल को किसने और कैसे खोजा? और भी सेंगोल (Sengol) को लेके अन्य सी बाते दोस्तों अगर आपका भी जवाब ना है तो आप इस आर्टिकल को पूरी जरुर पढ़े. मै आपको पुर्ण विश्वास दिलाता हु की इसे पड़ने के बाद आपके मन में सेंगोल (Sengol) को लेके कोई भी सवाल नही रहेगा.

सेंगोल (Sengol) का इतिहास –

Sengol Installed in The New Parliament: दोस्तों सेंगोल का इतिहास अपने आप में काफी पुराना है. वैसे तो सेंगोल का संबंध भारत की आजादी से ही जुड़ा है, और यह मूल रूप से तमिलनाडु के चोल साम्राज्य से संबंधित भी है. कहते है चोल साम्राज्य में जब भी किसी राजा का राज्याभिषेक हुआ करता था, तब राज्यभिषेक के समय इसी का इस्तेमाल किया जाता था, जिसे सेंगोल कहते है. सेंगोल को सत्ता का प्रतीक भी मानते है, इसलिए जब भी एक राजा दूसरे राजा को सत्ता सौंपता था तब वे एक दुसरे को सेंगोल दिया करते थे.

भारत देश के सबसे पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को अंग्रेजो ने सेंगोल 1947 मे सौंपा था. तब सत्ता को सौंपने के प्रतीक के रूप में सेंगोल का उपयोग किया जाता था. सेंगोल होना यानी देश के राजा के हाथ में सत्ता का मालिक होने का प्रतीक है.

राजदंड की अवधारणा –

राजतिलक और राजदंड की वैदिक रीतियों के मुताबिक, नए राजा के राज्याभिषेक के समय जब वह गद्दी पर बैठा करते थे. तो तीन बार ‘अदण्ड्योः अस्मि’ कहता है. राज्याभिषेक करवा रहा राजपुरोहित पलाश दंड से नए राजा को मारता है और कहता है ‘धर्मदण्ड्यो: असि’. यह राजा को कहा जा रहा है. इसका मतलब होता है कि उसे दंडित नहीं किया जा सकता है. वहीं, दूसरी ओर पुरोहित के कहने का अर्थ होता है कि राजा को भी धर्म दंडित कर सकता है. इसे ही कहते हुए राजा को राजदंड सौपा जाता था.

नंदी की प्रतिमा सेंगोल में क्यों है?

सेंगोल में नंदी की प्रतिमा
सेंगोल में नंदी की प्रतिमा: Image Source – Twitter

प्राचीन चोल इतिहास से इस सेंगोल में गोल सी आकृति और नक्काशी बनावट की वजह भी संबंधित है. जैसा की सेंगोल के ऊपरी सिरे पर बैठे हुए नंदी की प्रतिमा बनी हुई है. दरअसल, नंदी की प्रतिमा इसका शैव परंपरा से संबंध प्रदर्शित करती है. और इसपर नंदी होने के कई अन्य मायने भी हैं.

हिंदू धर्म में नंदी समर्पण का प्रतीक है. राजा सहित प्रजा भी राज्य के प्रति समर्पित होती है. भगवान शिव के आगे नंदी, भी इसी तरह स्थिर मुद्रा में रहते हैं, उनकी यह स्थिरता शासन के प्रति अडिग होने का प्रतीक मानी जाती है. जिसका न्याय अडिग है, उसका शासन भी अडिग होता है. इसलिए नंदी को इस राजदंड के सबसे शीर्ष पर स्थान दिया.

अब तक कहां थी इतनी पुरानी सेंगोल?

पीएम जवाहर लाल नेहरू जी को सेंगोल सबसे पहले सौंपे जाने के बाद से सेंगोल को सभी लोग भूल गए थे. प्रयागराज में स्थित नेहरू संग्रहालय मे तबसे सेंगोल को सुरक्षित रखा गया था. लेकिन अब भारत के सरकार (Pm Modi) ने सेंगोल को नए संसद भवन यानी भारत के नए घर में रखा.

राजागोपालाचारी ने सुझाव दिया था –

भारत के आख़िरी वायसरॉय माउंटबेटेन ने नेहरू से पूछा कि भारत की बागडोर भारत को कैसे सौंपी जाएगी ब्रिटिश से लेकर? तो नेहरू ने राजा यानि चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के सामने सवाल दोहराया. सदियों पहले दक्षिण भारत की चेरा, चोला और पंड्या वंशों में सत्ता का हस्तांतरण जिस प्रकार किया जाता था. ठीक वैसे ही अंग्रेज़ों से भारत को सत्ता सौंपी जानी चाहिए.

राजा का सुझाव मान लिया गया और उन्हें पूरी तरह से व्यवस्था करने की भी ज़िम्मेदारी दी गई. ये राजा पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी, जैसे की भारत की स्वाधीनता का प्रतीक चिह्न बनवाना कोई आसान कार्य नहीं था. राजा थिरुवावादुथुरई अधीनम मठ के मठाधीश के पास पहुंचे और राजदंड बनाने का काम मठाधीश ने वुम्मिदी बंगारू ज्वेलर्स को सौंपा.

नेहरू को कैसे सौंपा गया था सेंगोल?

एक पुरोहित ने पहले माउंटबेटेन को दिया था सेंगोल और फिर उसे वापस ले लिया. उसके बाद इस पर गंगाजल छिड़का गया और फिर पंडित जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया. और जैसा की मध्य रात्रि से पहले इस समारोह का आयोजन किया गया था. और इसी के बाद 15 अगस्त को एक आज़ाद देश बना भारत, कहते है कि जब पंडित नेहरू को सेंगोल सौपा गया तो सेंगोल स्वीकार करने के अवसर पर एक विशेष गीत भी गाया.

नेहरू को सौंपा गया था सेंगोल
नेहरू को सौंपा गया था सेंगोल: Image Source – Twitter

तमिल यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर एस राजावेलू के अनुसार शैव मठ, थिरुवावादुथुरई अधीनम के मुख्य पुरोहित ने ही पंडित नेहरू को सेंगोल दिया था.

दक्षिण भारत से खास नाता है सेंगोल का –

रिपोर्ट्स और ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार, दक्षिण भारत के कई सम्राज्यों में सेंगोल या राजदंड भावी राजा को मुख्य पुरोहित द्वारा सौंपा जाता था. ये सत्ता के हस्तातंरण का प्रतीक था. PTI से बात-चीत के दौरान तमिल यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर एस राजावेलू ने बताया कि चोल साम्राज्य में समयाचार्य राजा को ये सेंगोल सौंपते थे.

सेंगोल पहले तमिला राजाओं के पास रहता था प्रोफ़ेसर ने कहा और ये न्याय और सुशासन का प्रतीक माना जाता था. सेंगोल का उल्लेख महाग्रंथ सिलापथीकरम और मनीमेकलई में भी किया गया है.

इस परिवार ने बनाया था ऐतिहासिक सेंगोल –

पंडित जवाहरलाल नेहरू को दिया गया सेंगोल चेन्नई, तमिलनाडु के वुम्मिडी बंगारू परिवार ने तैयार किया. अफ़सोस की बात तो यह था कि 2018 तक इन परिवार वालो को भी नहीं पता था कि उनके पूर्वजों ने ही नेहरू को दिया गया सेंगोल बनाया था. 2018 में एक मैगज़ीन के लेख में इसका ज़िक्र किया तब जाके उन्हें पता चला. वही इस परिवार को भी निमंत्रण किया गया जब 28 मई 2023 को नए संसद भवन का उद्घाटन हो रहा था, और इस सेंगोल को भारत के नए संसद भवन में विराजमान किया ज रहा था

रिपोर्ट्स के अनुसार 1947 में वुम्मिदी एथीराजालू और उनके भाई वुम्मि दो सुधाकर ने सेंगोल को तैयार किया था. ये चांदी से बनाया गया था और इस पर सोने का पानी चढ़ाया गया था. कई सुनारों ने सेंगोल पर नक्काशी की. बुम्मिडी बंगारू परिवार की चौथी पीढ़ी के सदस्य अमरेंद्रन वुम्मिडी के मुताबिक आज के हिसाब से इस सेंगोल की कीमत 70-75 लाख रुपये तक होगी. अमरेंद्रन का कहना है कि इसे बनाने में कम से कम 3 दिन का समय लगा होगा.

मैं सेंगोल हूं… मैं हिंदुस्तान के इतिहास का हिस्सा हूं. वर्तमान का किस्सा हूं

मेरी कहानी सिर्फ उतनी नहीं है, जितनी आपने अभी तक जानी है. मेरी कहानी बहुत दिलचस्प है. मैं आज आपको अपनी पूरी कहानी सुनाऊंगा. मैं उन सवालों के उत्तर भी दूंगा, जो मेरे विषय में जानते हुए आपके मन में उमड़-घुमड़ रहे हैं. आखिर मैं कैसे अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक बना?

मैं सेंगोल हूं...
मैं सेंगोल हूं… Image Source – Twitter

अगर आप मेरे बारे में और भी जानना चाहते है तो आप निचे दिए गए आर्टिकल को एक बार जरुर पढ़े……. हमें बेहद ख़ुशी मिलेगी.

मैं सेंगोल हूं… निष्पक्ष न्यायपूर्ण शासन का प्रतीक सेंगोल. मैं हिंदुस्तान के इतिहास का हिस्सा हूं. वर्तमान का किस्सा हूं. और एक बार फिर हिंदुस्तान के लोकतांत्रिक भविष्य का हिस्सा बनने पर रोमांचित हूं. मैं उस स्वतंत्रता का प्रतीक हूं, जिसे पाने के लिए भारत के ना जाने कितने वीर हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए. और ना जाने कितने मतवालों ने अपना स स्वि न्योछावर कर दिया. भारत की आज़ादी की पहली अनूठी सूरत हूं मैं. मैं सिंगोल हूं….

मैं देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मुट्टी में आज़ादी की पहली खुशबू बनकर महका था, तो फिर मुझे देश ने भुला क्यों दिया? क्या मेरे साथ भी कोई सियासत हो गई? मैं सेंगोल हूँ कई लोगों ने मुझे राजदंड कहकर पुकारा है. वैसे, मेरी कहानी हिंदुस्तान की आज़ादी से बहुत पुरानी है

हां, इतना ज़रूर है कि मेरा संबंध जिस राजवंश से है, उसके विषय में उत्तर भारत में पूरी जानकारी बहुत कम लोगों को है. मैं सेंगोल, चोलवंश से संबंध रखता हूं. उस चोलवंश से, जिसके जिक्र के बिना दक्षिण भारत का इतिहास लिखना असंभव है. चोल राजवंश ऐसा राजवंश है, जिसने 1600 वर्षों से अधिक तक शासन किया.

आज जिसे हम बंगाल की खाड़ी कहते हैं, उसे कभी ‘चोलों की झील’ तक कहा जाने लगा था. इस राजवंश ने बंगाल से लेकर दक्षिण भारत और सुदूर दक्षिण के दूसरे देशों तक राज किया था. इस वंश में राजेंद्र चोल प्रथम और राजाराज चोल जैसे प्रतापी राजा हुए. चोलवंश का वैभवशाली इतिहास है. इसका अहसास आपको पीएस-1, और पीएस-2 जैसी फिल्में देखकर भी हुआ होगा

मैं सेंगोल हूं, और मुझे इसी चोलवंश में 2600 साल पहले चोल राजाओं ने सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक बनाया. मेरे माध्यम से ना जाने कितने नसीहत, देखें क्या कहा राजाओं ने अपने उत्तराधिकारियों को सत्ता सौंपी. चोलवंश के बाद मौर्य और गुप्त राजवंश में भी इसी तरह सत्ता सौंपने के कई किस्से हैं.

मैं सैंगोल हूं और चोलवंश में मेरी कहानियों के लंबे अफसाने हैं. आप सोच रहे होंगे कि चोल वंश में सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक एक राजदंड का आधुनिक हिंदुस्तान में जिक्र क्यों हो रहा है. चलिए, अब में आपको वो किस्सा सुनता हूँ, जिसकी वजह से बरसों बरस गुमनामी में खोने के बाद अचानक मुझे नया जीवन मिला है.

दरअसल, दो साल पहले यानी 2021 की गर्मियों में तमिल पत्रिका ‘तुगलक’ में ये लेख छपा था और तमिल भाषा के इस लेख में हिंदुस्तान की आज़ादी में मेरे योगदान का जिक्र था. इस लेख को जानी मानी नृत्यांगना पद्मा सुब्रण्यम ने पढ़ा और उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मेरे विषय में जानकारी सार्वजनिक करने को कहा.

सिंगोल क्या है? प्रधानमंत्री के मन में पहला सवाल यही था. नरेंद्र मोदी ने संस्कृति मंत्र लय को मेरे विषय में जानकारी हासिल करने को कहा, जिसके बाद मेरी खोजबीन शुरू हुई, कुछ ही दिन में भारत सरकार के अधिकारी उस म्यूजियम तक पहुंच गए, जहां में कैद था, वो भी गलत पहचान के साथ.

प्रयागराज में जहां मुझे रखा गया था, वहां मेरी पहचान दर्ज थी ‘पंडित जवाहरलाल नेहरू को भेंट, सुनहरी छड़ी, ‘वैसे, सच ये है कि कुछ बरस पहले मुझे बनाने वाले चेट्टी परिवार के युवा बच्चों को जब मेरे बारे में पता चला तो उन्होंने मुझे इलाहाबाद के म्यूजियम में खोज लिया

मैं सेंगोल हूं.. मेरा नाम तमिल भाषा के शब्द ‘सेम्मई’ से बना है. जिसका अर्थ है सच्चाइ धर्म और निष्ठा. और अब आपके मन में सवाल होगा कि मेरी खोजबीन की आवश्यकता क्या थी? चलिए अब मैं वो कहानी सुनाता हूं, जिसे सुनकर आप रोमांचित हो जाएंगे. ये बात जुलाई 1947 की है.

भारत अपनी आजादी के बिलकुल करीब था. ब्रिटिश शासन का सूर्य भारत में अस्त होने वाला था. जिस आज़ादी को पाने के लिए कई वीर जवानों ने कुर्बानी दी थी, वो आजादी मिलने की घड़ी निकट आ रही थी. अंतिम वॉयसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन के कंधे पर जिम्मेदारी थी कि वो भारतीयों को स्वतंत्रता सौंपे, मगर कैसे?

एक दिन लॉर्ड माउंटबेटन ने अपने दफ्तर में जवाहरलाल नेहरू से सत्ता के हस्तांतरण के संबंध में सवाल किया. उन्होंने पूछा कि आप किस तरह सत्ता का हस्तांतरण चाहते हैं. उन्होंने कहा कि ये ऐतिहासिक अवसर है, इसलिए हाथ मिलाना या फाइल का आदान प्रदान ठीक नहीं है. कुछ ऐसी रस्म होनी चाहिए, जिसका अपना महत्व हो और जो इस ऐतिहासिक पल को रेखांकित कर पाए. जवाहरलाल नेहरू के पास उस वक्त कोई जवाब नहीं था. लेकिन, उनके खास और इतिहास के मर्मज्ञ सी राजगोपालाचारी के पास जवाब था.

मैं सेंगोल हूं. मैंने कई सत्ता हस्तांतरण देखे हैं, लेकिन भारत में जिस तरह सत्ता का हस्तांतरण हुआ, और जैसा जोश भारत के लोगों में था, वैसा मैंने कभी नहीं देखा. और यही वजह है कि मेरे माध्यम से होने वाले सत्ता हस्तांतरण को विशेष बनाने के लिए सी राजगोपालाचारी ने दिन रात एक कर दिए. उन्होंने बहुत अध्ययन कर चोलवंश की महान सेंगोल परंपरा क अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण के लिए चुनने का सुझाव दिया.

सेंगोल का उल्लेख दो तमिल महाकाव्यों- सिलपथिकारम और अणिमेकलई में है. इसके अलावा तमिल काव्य तिरुक्कुरल में सेंगोल को लेकर एक पूरा अध्याय है. राजाजी को इस परंपरा के विषय में अच्छी तरह पता था. उन्होंने परंपरा को लेकर नेहरू को आश्वस्त किया और जवाहरलाल नेहरू ने इस सुझाव को स्वीकृति दे दी.

मैं सेंगोल हूं. मैंने कई राजवंश देखे हैं. लेकिन, सी राजगोपालाचारी और जवाहरलाल नेहरू ने मुझे नहीं देखा था. वो नहीं जानते थे कि राजदंड को कैसे निर्मित किया जाए. इसके लिए उन्होंने तमिलनाडु के प्रमुख मठ तिरुव दुथुराई अधीनम से संपर्क किया. इस मठ को 500 साल पहले स्थापित किया गया था. चोला भूमि के केंद्र में स्थापित ये मठ आज भी कार्यरत है. चोल राजा शिव भक्त थे. वहां सत्ता हस्तांतरण के समय भगवान शिव का आह्वान कर महंत सेंगोल को न्याय के प्रतीक के रूप में दूसरे राजा को सौंपता था.

चोलों द्वारा हजारों साल पहले स्थापित उनके मंदिरों में आज भी पूजा की जाती है. उस वक्त सी राजगोपालाचारी की गुजारिश पर तत्कालीन मठ प्रमुख और 20वें गुरु श्री ला श्री अंबालावना डेसिका स्वामीगल ने यह बीड़ा उठा लिया. वो उस वक्त बीमार चल रहे थे. लेकिन हिन्दुस्तान की आजादी में संगोल की भूमिका के मद्देनजर उन्होंने हामी भर दी और सेंगोल बनाने का काम उस वक्त के मद्रान के एक प्रसिद्ध ज्वैलर को सौंपा. इस स्वर्णकार का नाम था वुम्मीदी बंगारु चेट्टी.

वुम्मीदी बंगारू चेट्टी ने साल 1900 में मंदिरों के बाहर जेवर बेचने का काम शुरू किया था. मुझे बनाने का काम उनके दो बेटों ने संभाला. उन्हें निर्देश दिया गया कि मुझे चाँदी से निर्मित किया जाए, जिस पर सोने की परत होगो और मेरे शीर्ष पर नंदी विराजमान होंगे, जो शक्ति और न्याय का प्रतीक हैं. अधीनम मठों में बड़े बड़े नंदी आज भी विराजमान हैं.

मैं सेंगोल हूं. मेरी परिकल्पना जितनी दुश्कर थी, उससे कहीं दुश्कर था मेरा निर्माण. बनाने वालों की परेशानी ये भी थी कि स्वतंत्रता दिवस बेहद निकट था और उन्हें सिर्फ आठ दिन में सेंगोल बनाने का कार्य करना था.

मैं सेंगोल हूं और आप जैसा देख रहे हैं, मुझे वैसा ही बनाया गया. पांच फीट लंबा और दो इंच मोटा. मुझे बनाने में करीब 15 हजार रुपए की कीमत आई.

मैं सेंगोल हूं और मुझे भी इंतजार था उस पल का, जब मैं आधुनिक समय में सत्ता हस्तांतरण का माध्यम बनने वाला था. आखिरकार, वो घड़ी आ गई. 14 अगस्त 1947 की शाम मैं एक विशेष विमान से दिल्ली पहुंचा. हज़ार साल के मेरे इतिहास में ये मेरी भी पहली विमान यात्रा थी. गुरुजी ने मेरे साथ तीन प्रतिनिधि भेजे थे. श्री ला श्री कुमार स्वामी थंबीरन उनमें प्रमुख थे. इसके अलावा, मठ में प्रार्थना करने वाले पुजारी मनीक्कम ओधुवार और नादस्वर विद्वान टीएन राजरत्नम पिल्लई भी साथ थे. इसके अलावा, गुरुजी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू के लिए अंग्रेजी में एक शुभकामना संदेश भी भेजा था.

14 घड़ी टिक-टिक कर रही थी. आज़ादी का पल करीब आ रहा था. मैं भी उत्साहित था. 4 अगस्त 1947 की शाम ढल रही थी, और मैं प्रतिनिधिमंडल के साथ लॉर्ड माउंट बेटन के समक्ष था. श्री कुमार स्वामी थंबीरन ने रीति अनुसार लॉर्ड माउंटबेटन के हाथों में मुझे सौंप दिया. माउंटबेटन ने मुझे अपने दोनों हाथों में थामा और कुछ पल के लिए निहारा, फिर, मुझे दोबारा कुमार स्वामी को सौंप दिया गया. इसके बाद मुझ पर गंगाजल छिड़ककर शोभायात्रा का आरंभ हुआ

मैं एक 1937 की फोर्ड टैक्सी में विराजमान था. गाजे बाजे के साथ शोभायात्रा जवाहरलाल नेहरू के निजी आवास 17 यॉर्क रोड पहुंची. शोभायात्रा के पहुंचने से पहले पंडित नेहरू एक ऐसे फोन कॉल की वजह से दुखी थे, जो लाहौर से आया था. लाहौर में गैर-मुस्लिमों को निशाना बनाया जा रहा था, और जैसे ही उन्हें ये सूचना मिली, उन्हें समझ नहीं आया वो क्या करें. कुछ पल बाद ही उन्हें संसद में भाषण देना था. वो दुखी थे. लेकिन तभी मेरे यानी सेंगोल के साथ शोभायात्रा की आवाज़ें वहा गूंजने लगीं. पंडित नेहरू ने प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया और कुछ ही पल बाद सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया शुरू हो गई.

मैं सेंगोल हूं और मैंने कई सत्ता हस्तांतरण देखे हैं, लेकिन, 14 अगस्त 1947 को रात्रि का अनुभव अविस्मरणीय है. रात के 10 बजकर 45 मिनट का समय था. इस अवसर पर ओदुवार ने तमिल संत त्रिन्यानसमंदर द्वारा रचित कोलारपदिगम से श्लोकों का पाठन किया. महंत ने नेहरूजी को पीतांबर पहनाया, तंजोर नदी से लाया जल छिड़का.

उनके माथे पर पवित्र भस्म का लेप किया और फिर उनके हाथों में मुझे सौंप दिया. उस राजदंड को, जिसे ग्रहण करते ही पारंपरिक विधि विधानों के मुताबिक सत्ता का हस्तांतरण हो गया. अर्थात देश आज़ाद हो गया. पंडित नेहरू ने सेंगोल यानी मुझे थामते ही निष्पक्ष राजकाज का उत्तरादायित्व ले लिया

एक लिहाज से इस पल ही देश आजाद हो गया. हालांकि, अंग्रेज चाहते थे कि सत्ता हस्तांतरण 15 अगस्त को हो. 15 अगस्त 1947 का चुनाव लॉर्ड माउंटबेटन ने किया था क्योंकि इसी दिन द्वितीय विश्वयुद्ध में मित्रराष्ट्रों के रूमक्ष जापानी सेना के आत्मसमर्पण की दूसरी बरसी थी. माउंटबेटन इस दिन को अपने लिए भाग्यशाली मानते थे लेकिन हिन्दुस्तान के ज्यो तेषियों की राय ऐसी नहीं थी. उनका कहना था कि ग्रह नक्षत्र नए देश के लिए ठीक नहीं है. कोई और दिन चुनना माउंटबेटन को मंजूर नहीं था.

उनका ज्योतिष पर कतई विश्वास नहीं था. ऐसे में बीच का रास्ता चुना गया. ये तय किया गया कि स्वतंत्रता दिवस समारोह को 14 अगस्त की मध्यरात्रि में ही शुरू कर दिया जाएगा. समारोह की शुरुआत रात 11 बजे होनी थी. उससे पहले ही दिग्गजों का पहुंचना शुरू हो गया था. संसद के बाहर लोगों का जोश देखते ही बन रहा था. नारे लग रहे थे. इतनी भीड़, इतनी खुशी थी कि बड़े नेताओं को लोगों को शांत रहने की अपील करनी पड़ी. समारोह की शुरुआत हुई वंदे मातरम के गान के साथ. सुचेता कृपलानी की आवाज़ में वंदे मातरम गुंजा तो वहां मौजूद सैकड़ों लोग राष्ट्रप्रेम में रोमांचित हो उठे.

उधर, संसद भवन से बाहर, आधी रात के आकाश में अचानक बिजली कड़क उठी औ मॉनसूनी बारिश उमड़ पड़ी. ऐसा लगा मानो कुदरत भी हिन्दुस्तान की आजादी का जश्न मनाने को बेकरार है. हजारों हिन्दुस्तानी बाहर खड़े थे. वो भीगने लगे. लेकिन आधी रात की संभावना ने उन्हें इतना रोमांचित और तन्मय कर रखा था कि भीगने का पता ही नहीं चल रहा था. आखिरकार आधी रात की वह टंकार शुरू हुई, जिसने एक दिन के समापन और साथ में एक युग के भी समापन की घोषणा कर दी.

डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद और सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे विद्वान पहले ही बोल चुके थे. अब नेहरू की बारी थी. नेहरू के शंखनाद ने एक बड़े साम्राज्य के अंत और भारत भूमि पर एक नए युग के सूत्रपात की घोषणा कर दी.

मैं सेंगोल हूं. मैंने सत्ता हस्तांतरण के कई भव्य नजारे देखे हैं, लेकिन जो नजारा 14-1: अगस्त की रात को देखा, वैसा कभी नहीं देखा था. रात दो बजे जवाहरलाल नेहरू वायसराय भवन की ओर गवर्नर जनरल को आमंत्रित करने गए तो लाखों की भीड़ उनके पीछे हो ली थी.

मैं सेंगोल हूं. वो राजदंड, जो न्याय शासन का प्रतीक है. मैंने अपना कर्तव्य निभा दिया, लेकिन ऐसा क्यों हुआ कि मुझे इस ऐतिहासिक दिन के बाद अचानक भुला दिया गया. इस उत्सव के बाद मुझे पहले प्रयागराज के आनंद भवन में कई बरस रखा गया, और फिर मैं एक रात अचानक प्रयागराज म्यूजियम में पहुंच गया. क्या ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि समारोह जल्दी में आयोजित हुआ था और मेरे माध्यम से सत्ता हस्तांतरण कोई कानूनी या औपचारिक मसला नहीं था.

इसलिए इसका कोई रिकॉर्ड नहीं रखा गया. या ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पंडित: नेहरू चाहते ही नहीं थे कि इस घटना का जिक्र बार-बार हो. क्या खुद को धार्मिक और रूढ़िवादी कहने से बचने वाले और खुद को सेकुलर कहने वाले पंडित नेहरू को ये आशंका थी कि अगर गले में पीतांबर, माथे पर भस्म और गंगाजल छिड़कने के बाद हाथों में संगोल थामे उनकी तस्वीरें दुनिया के सामने आएंगी तो उनकी सेकुलर छवि को धक्का लगेगा.

आखिर, मुझ जैसे ऐतिहासिक राजदंड को म्यूजियम में भी रखा गया तो उसका परिचय गलत क्यों और किसने दिया? क्यों किसी का ध्यान इस पर नहीं गया? क्या ऐसे और भी विधान आजादी के समारोह में हुए, जो अभी भी गुप्त हैं. उस वक्त अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी मेरे दिल्ली आगमन का जिक्र हुआ था, लेकिन वो कतरनें धूल में खो गई. क्यों?

मैं सेंगोल अपनी कहानी सुनाते हुए आभारी हूं कांची मठ के महा पेरियवा का, जिन्होंने मेरी कहानी अपने शिष्य को सुनाई. जिसके बाद मेरी • कहानी बी आर सुब्रमण्यम की किताब में आई और फिर कई तमिल पत्रिकाओं में.

मैं सेंगोल हूं और मैं अनंत काल तक हर सत्ता को न्यायपूर्ण और निष्पक्ष शासन की शपथ याद दिलाता रहूंगा. मुझे इंतजार है अब नयी जगह का. मैं जानता हूं कि मुझे लेकर अब राजनीति शुरू है. आरोप-प्रत्यारोप हो रहे हैं. किसी को मेरा पुनर्जीवन तमिल राजनीति में एक पार्टी की पैठ बनाने से जुड़ा दिख रहा है तो किसी को मेरे महत्व से ही इंकार है. मैं राजदंड नहीं जानता कि इन आरोपों का जवाब कैसे देना है?

मैं सेंगोल हूं और मुझे गर्व है कि हिंदुस्तान में जब लोकतंत्र की पहली कोपल फूटी थी, तब मैं वहां उपस्थित था. मुझे गर्व है कि मैं आज़ादी के दिन देश के पहले प्रधानमंत्री के हाथ में था. मुझे विश्वास है कि हिन्दुस्तान में लोकतंत्र के सूर्य उदित होने का जो भव्य नजारा मैंने 75वर्ष पहले देखा था, वो नजारा मुझे फिर दिखेगा. ये अलग बात है कि अब भारत में लोकतं की जड़े मजबूत हो चुकी हैं. भारत अब लोकतंत्र का पाठ दुनिया को पढ़ा रहा है. मैं सिर्फ एक प्रतीक हूं. मुझे चाहे जहां स्थापित किया जाए मैं न्यायपूर्ण शासन की कहानी को दोहराता रहूंगा.

मैं सेंगोल हूं… मैं देश के करोड़ों लोगों को विश्वास दिलाता हूं कि सत्ता किसी की भी हो, शासन पर किसी का भी अधिकार हो, मैं बरसों बरस तक अपने साथ जुड़ी सत्यता, ईमानदारी और निष्ठा, निष्पक्षता की शपथ शासन करने वालों को याद दिलाता रहूंगा. मैं सेंगोल हूँ…….

यहाँ जाने भारत के नए घर के बारे में –

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