भारत में मुगल साम्राज्य की शुरुआत 1526 के आसपास हुई और 1707 तक भारत के लगभग हर हिस्से पर मुगल सम्राट का शासन था। 1707 के बाद मुग़ल साम्राज्य में बहुत शक्तिशाली राजाओं की कमी के कारण मुग़ल साम्राज्य का धीरे-धीरे पतन होने लगा, लेकिन 1850 तक मुग़ल राजाओं ने भारत के कई क्षेत्रों पर शासन किया।
भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखने वाले बाबर का जन्म उज्बेकिस्तान में हुआ था और वह इसी मध्य एशियाई देश से भारत आया था। भारत में मुग़ल साम्राज्य की स्थापना के कुछ ही समय बाद प्रथम मुग़ल शासक बाबर की मृत्यु के बाद उसके पुत्र हुमायूँ ने भारत में मुग़ल साम्राज्य का और विस्तार किया। तो चलिए जानते है Mughal Empire की सम्पूर्ण जानकारी.
मुग़ल साम्राज्य की स्थापना
मुग़ल राजवंश का परिचय: मध्य एशिया में दो महान राजवंश पनपे जिनका विश्व के इतिहास पर व्यापक प्रभाव पड़ा। उनमें से एक का नाम तुर्क और दूसरे का मंगोल था। तुर्कों का मूल स्थान तुर्किस्तान था और मुगलों या मंगोलों का मूल स्थान मंगोलिया था। ये दोनों जातियाँ प्रारंभ में खानाबदोश थीं और अपनी आजीविका की तलाश में इधर-उधर घूमती रहती थीं। ये बहुत बहादुर, साहसी और योद्धा जातियाँ थीं और इनका मुख्य व्यवसाय युद्ध और लूटपाट था।
ये दोनों जातियाँ कुलों में रहती थीं और प्रत्येक कबीले का एक सरदार होता था जिसके प्रति कबीले के लोगों में अपार श्रद्धा होती थी। अक्सर ये जनजातियाँ आपस में लड़ती रहती थीं लेकिन कभी-कभी ये बहादुर और साहसी सरदारों के नेतृत्व में संगठित भी हो जाती थीं। धीरे-धीरे इन घुमंतू जातियों ने अपने बाहुबल के बल पर अपना राजनीतिक संगठन स्थापित किया और समय के साथ न केवल एशिया के एक बड़े हिस्से पर बल्कि दक्षिणी यूरोप में भी अपना शासन स्थापित कर लिया।
![Establishment and importance of the Mughal Empire](http://4uhindime.com/wp-content/uploads/2023/11/13213-497fd282-4b14-4b21-853f-9dd0fab41395.jpg)
धीरे-धीरे इन दोनों जातियों के बीच वैमनस्य और शत्रुता बढ़ने लगी और दोनों एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी बन गये। तुर्की लोग मुगलों को अत्यंत घृणा की दृष्टि से देखते थे। इसका कारण यह था कि वे उन्हें असभ्य, क्रूर तथा मानवता का शत्रु मानते थे। तुर्कों में अमीर तैमूर और मुगलों में चंगेज खाँ का नाम बहुत प्रसिद्ध है। वे दोनों महान वीर, विजेता और साम्राज्य-संस्थापक थे। इन दोनों ने भारत पर आक्रमण कर उसके इतिहास को प्रभावित किया था।
चंगेज़ खान ने दास-वंशीय शासक इल्तुतमिश के शासनकाल के दौरान भारत में प्रवेश किया था और तैमूर ने तुगलक-वंशीय शासक महमूद के शासनकाल के दौरान भारत में प्रवेश किया था। हालाँकि चंगेज खान पंजाब से लौट आया था, लेकिन तैमूर ने पंजाब में अपना राज्य स्थापित कर लिया था और अपना गवर्नर वहीं छोड़ दिया था। मोदी राजवंश के पतन के बाद दिल्ली में एक नये राजवंश की स्थापना हुई जो मुगल राजवंश के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
इस राजवंश का संस्थापक बाबर था, जो अपने पिता की ओर से तैमूर और अपनी माता की ओर से चंगेज खान का वंशज था। इस प्रकार बाबर की धमनियों में तुर्क और मंगोल दोनों का रक्त बह रहा था। लेकिन तुर्क का पुत्र होने के कारण उसे तुर्क ही माना जाना चाहिए, मंगोल नहीं। अतः उसने दिल्ली में जिस राजवंश की स्थापना की उसे मुगल वंश नहीं बल्कि तुर्क राजवंश कहा जाना चाहिए।
लेकिन इतिहासकारों ने इसे मुगल वंश के नाम से पुकारा है और इसे इतिहास की एक जटिल पहेली बना दिया है। अब इस राजवंश के महत्व पर विहंगम दृष्टि डालना आवश्यक है।
मुग़ल वंश का महत्व
भारतीय इतिहास में मुग़ल वंश का बहुत महत्व है। इस राजवंश ने लगभग 200 वर्षों तक भारत पर शासन किया। बाबर ने 1526 ई. में दिल्ली में मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की और इस वंश के अंतिम शासक बहादुर शाह को 1858 ई. में दिल्ली की गद्दी से हटा दिया गया। इस प्रकार, भारत में किसी अन्य मुस्लिम राजवंश ने मुगल राजवंश जितने लंबे समय तक स्वतंत्र रूप से शासन नहीं किया।
मुगल वंश भारतीय इतिहास में न केवल समय की दृष्टि से बल्कि विस्तार की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। मुग़ल बादशाहों ने न केवल संपूर्ण उत्तर भारत पर अपना एकाधिकार साम्राज्य स्थापित किया बल्कि दक्षिण भारत के एक बड़े हिस्से पर भी अपना प्रभुत्व स्थापित किया। किसी अन्य मुस्लिम राजवंश ने इतने विशाल साम्राज्य पर इतनी सफलतापूर्वक शासन नहीं किया जितना मुगल सम्राटों ने किया।
शांति एवं व्यवस्था की दृष्टि से मुगल वंश का भारतीय इतिहास में बहुत महत्व है। चूंकि मुसलमानों में उत्तराधिकार का कोई निश्चित नियम नहीं था, इसलिए सल्तनत काल से ही राजवंश बहुत तेजी से बदलते रहे। इसका परिणाम यह हुआ कि राज्य में अशांति और कुप्रबंध फैल गया तथा अमीरों और सरदारों के षडयंत्र चलते रहे। मुग़ल काल में एक ही वंश का निरंतर शासन चलता रहा। इससे राज्य को स्थिरता प्राप्त हुई। इसमें कोई संदेह नहीं कि मुगल बादशाहों ने साम्राज्यवादी नीति अपनाई और विजय अभियान चलाया, लेकिन वे अपने राज्य में आंतरिक शांति और व्यवस्था बनाए रखने में पूरी तरह सफल साबित हुए।
इस आंतरिक शांति और व्यवस्था के परिणाम बहुत महत्वपूर्ण थे। मुग़ल बादशाहों ने अपने पूरे राज्य में एक प्रकार की शासन व्यवस्था स्थापित की, एक प्रकार के नियम लागू किये तथा एक प्रकार के कर्मचारियों की नियुक्ति की। इसने एकता की भावना जागृत करने में बहुत योगदान दिया। शांति और व्यवस्था स्थापित होने से देश की आर्थिक प्रगति बहुत तेजी से होने लगी। इससे राज्य का वैभव और वैभव बहुत बढ़ गया। मुगल बादशाहों का दरबार अपनी शानो-शौकत और शान के लिए दूर-दूर तक मशहूर था। न केवल वह स्वयं बल्कि सुखी और समृद्ध उसकी प्रजा भी थी।
देश की समृद्धि का परिणाम उस काल की कला की प्रगति में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। दिल्ली, आगरा और फ़तेहपुर सीकरी में बनी भव्य इमारतें, मस्जिदें, मकबरे और शाही प्रसाद उस काल की स्मृति के द्योतक हैं। ताज महल, तख्तेतौस, कोहिनूर आदि इस काल की समृद्धि के ज्वलंत प्रमाण हैं। इस काल में सभी ललित कलाएँ विकसित हुईं, जिनका विकास शांतिपूर्ण वातावरण में ही हो सकता है। साहित्य का उत्कर्ष भी इस काल की समृद्धि एवं शान्त वातावरण का द्योतक है। वस्तुतः मुगल काल का गौरव अद्वितीय एवं अतुलनीय है।
एमिली डिकिन्सन अमेरिकी कवी: उम्र के साथ हम पुराने नहीं होते, नए होते चले जाते हैं,
मुगल बादशाहों ने भारतीय इतिहास में एक नई नीति का सूत्रपात किया। वह नीति सहयोग और सहिष्णुता की थी. इस काल में सल्तनत काल की तरह धार्मिक अत्याचार नहीं किये गये। यद्यपि बाबर ने भारत में हिंदुओं के साथ लड़े गए युद्धों को ‘जिहाद’ का रूप दे दिया था, लेकिन यह भावना केवल युद्ध के समय और युद्ध के मैदान में ही बनी रही, शांति के समय में नहीं। हुमायूँ ने जीवन भर अफगानों से संघर्ष किया और अपनी हिन्दू प्रजा पर कोई अत्याचार नहीं किया। उनके पुत्र अकबर ने पूर्णतः धार्मिक सहिष्णुता एवं मेल-मिलाप की नीति का पालन किया। वह हिंदुओं का सम्मान और विश्वास करता था और उन्हें राज्य में उच्च पदों पर नियुक्त करता था। इससे मुगल राज्य मजबूत हुआ। जब तक अकबर की उदार नीति का पालन किया गया, मुग़ल साम्राज्य मजबूत और सुव्यवस्थित रहा, लेकिन जब औरंगजेब के शासनकाल में इस नीति को छोड़ दिया गया, तो मुग़ल साम्राज्य पतन की ओर चला गया।
मुगल वंश का एक अन्य दृष्टि से भी बहुत महत्व है। इस काल में भारतीय पुनः विदेशी देशों के निकट सम्पर्क में आये। पूर्व और पश्चिम के देशों के साथ भारत के व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध पुनः स्थापित हुए। पश्चिमी देशों से यात्री भारत आने लगे, जिससे भारतीयों के साथ उनके व्यापारिक संबंध बढ़ने लगे और विचारों का आदान-प्रदान भी होने लगा। इसका अंतिम परिणाम यह हुआ कि भारत में यूरोपीय लोगों की राज्य संस्थाएँ स्थापित हो गईं और पश्चिमी देशों की सभ्यता और संस्कृति का भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ा।