UK and Japan: भविष्य मे मंदी का क्या प्रभाव है और क्या भारत को चिंतित होना चाहिए?

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UK and Japan: आजकल की दुनिया मे मंदी एक बहुत बड़ा संकट का विषय है वैसे ही ब्रिटेन और जापान 2023 के आखिर में मंदी की चपेट में आ चुके है। लेकिन मंदी की सच्चाई क्या है और क्या यह हम सभी लोगो द्वरा जो समझा जाता है उससे कुछ अलग है? यही हम इस पोस्ट के माध्यम से आप सभी को बताने वाले है बने रहे इस पोस्ट के साथ। पिछले सप्ताह मे, एशिया और यूरोप के सांख्यो से सभी को पता चला कि जापानी और ब्रिटेन की अर्थव्यवस्थाएँ मंदी की चपेट में आ चुकी थीं। हालाँकि जापान के लिए यह चिंताजनक था , लेकिन ब्रिटेन के लिए यह एक महत्वपूर्ण रूप से डरावनी घटना थी क्योंकि 2024 में राष्ट्रीय चुनाव होने की आशा है। G7 का तीसरा सदस्य जर्मनी जैसा देश भी जापान और ब्रिटेन का पालन कर सकता है।

A Technical Recession

जिसे आमतौर पर मंदी के रूप में भी जाना जाता है, उसे किसी देश के Gross Domestic Product (GDP) में year-on-year (YoY) सिकुड़न की लगातार दो तिमाहियों के रूप में परिभाषित किया जाता है। जैसे, जापान और यूके इन दोनों ने जुलाई-सितंबर 2023 और अक्टूबर-दिसंबर 2023 में year-on-year को ध्यान मे रखकर अपनी GDP में गिरावट देखी है। इन सभी के बीच, जर्मनी की GDP में 2023 की अंतिम तिमाही में 0.3 फीसदी की गिरावट आई है और इसके कम होने की उम्मीद है। जर्मन के केंद्रीय बैंक के मुताबिक , 2024 की पहली तिमाही में फिर से हो सकता है ऐसा जर्मनी के Central Bank ने कहा है। 

RECESSION AMONG G7 NATIONS

जैसा कि Bundesbank ने 19 फरवरी को कहा था कि अर्थव्यवस्था ठीक ही नहीं हो रही थी। हर देश मे मंदी आने के अपने अलग कारण होते है, मंदी की इस परि-भाषा को मुख्य रूप से ‘तकनीकी मंदी’ भी कहा जाता है और मीडिया रिपोर्ट में इसका सबसे ज्यादा इस्तमाल किया जाता है। इसी परिभाषा का इस्तमाल करते हुए, भारत भी 2020-21 की पहली छ महीने में मंदी में था, लेकिन जब अप्रैल-जून 2020 में Gross Domestic Product में 23.4 फीसदी और जुलाई-सितंबर 2020 में 5.7 फीसदी की गिरावट आई थी, क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था रुक गई थी। कोरोना वायरस के प्रसार को पूरी तरह से रोकने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन लागू किया गया था।

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                        UK and Japan: Image Source – Social Media

Is a Technical Recession Truly a Recession?

निश्चित रूप से, GDP में लगातार दो तिमाहियों में सिकुडंन केवल एक सामान्य कानून है। अतिआवश्यक रूप में, मंदी की पहचान करना किसी भी देश के लिए अधिक कठिन होता है। अमेरिका का National Bureau of Economic Research (NBER) मंदी को “पूरी अर्थव्यवस्था में पूरी तरह से फैली आर्थिक गतिविधियों में एक बेहद महत्वपूर्ण गिरावट है, जो कुछ महीनों से ज्यादा समय तक चल रही है। NBER के मुताबिक, जो की अमेरिका में मंदी के समय की पहचान करता है, ऐसी बातों को लोगों तक पहुॅचाते समय आर्थिक स्थितियों का ज्यादा सूक्ष्म मूल्यांकन अतिआवश्यक है और इसकी Business Cycle Dating Committee यह आकलन करती है। अमेरिका के इस समिति के पिछले सदस्यों में पूर्व फेडरल रिजर्व अध्यक्ष Ben Bernanke भी शामिल हैं।

क्या भारत को चिंतित होना चाहिए?

भारत का विकास दर अपेक्षा से ज्यादा होने के कारण और दुनिया में सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था का मुकाम हासिल करने के साथ-साथ, भारत के लिए मंदी बिल्कुल भी चिंता का विषय नहीं है। जैसा कि ऊपर बताया गया है की, 2020 में लगातार दो तिमाहियों में भारत की विकास के दर को शून्य या शून्य से नीचे खींचने के लिए हर सदी में एक बार आने वाली महामारी(कोरोना Virus) की आवश्यकता पड़ी। हालाँकि, भारत दुनिया के बाकी हिस्सों से अलग नहीं है, और विदेशों में विकास में मंदी व्यापार चैनलों के माध्यम से घरेलू आर्थिक गतिविधियों को बुरी तरह से प्रभावित कर सकती है।

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                                UK and Japan: Image Source – Social Media

हमारी भारत सरकार इस बात को मानती है। इसलिए, 20 फरवरी को जारी वित्त मंत्रालय की जनवरी के लिए महीने की आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि आज कल के वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण भारत के निर्यात को ज्यादा प्रतिस्पर्धी और मनलुभाने वाला बनाना “जरूरी और महत्वपूर्ण” है, जिसमें मौजूदा रेड के कारण होने वाले अवरोध का जिक्र भी किया गया है की समुद्री संकट आने वाला है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के मुताबिक, भारत का करीब 48.7 फीसदी व्यापारिक निर्यात और 30.4 फीसदी आयात लाल सागर रास्ते के संपर्क में है।

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